मैं राम मंदिर हूँ, मेरी एक कहानी है |
राम में मंदिर है, मंदिर में राम हैं,
राम का मंदिर है, जन-जन में राम हैं, कण-कण में मंदिर है,
शाश्वत राम का वैश्विक मंदिर है |
मैं राम मंदिर हूँ, मेरी एक कहानी है |
मेरे रज-कण पर बाल राम के चरण पड़े, उनकी बाल लीलाओं के कितने यहाँ सुमन खिले |
मैंने देखी है प्रभु की बाल-मुस्कान, उनके चंद्र-मुख का तेज कांतिमान |
चारों भाइयों का खेल परिहास देखा, माता-पिता का मान मनुहार देखा |
मैं ही तो हूँ प्रभु राम के अवतरण का प्रथम साक्ष्य,
उनके धरा पर होने का प्रथम प्रमाण |
मैं राम मंदिर हूँ, मेरी एक कहानी है |
अनगिनित वर्षों की है कहानी मेरी, पुरानी बात नहीं करता, पाँच सौ वर्षों की कथा सुनानी है |
मैंने कितने उतार-चढ़ाव देखे, कितने शीत-ज्वार देखे,
मेरी संतान अवश हुई, समय की पकड़ अबल हुई
लुटेरों ने मुझ पर वार किये, मेरे स्तम्भों पर कितने प्रहार किये |
शीर्ष पर मेरे मलबा डाला, दीवारों को भी हिला डाला, परन्तु नींव को मेरी न डिगा पाए,
यह तो राम जी की जननी-माटी है,
मैं राम मंदिर हूँ, मेरी एक कहानी है |
मैं मूक चहुँ ओर देखता रहा, परायों से अधिक अपनों की कायरता सहता रहा |
समय के बदलने की प्रतीक्षा में रत रहा, जाग रहे स्वाभिमान को खोजता रहा |
कार सेवकों के आने की बाट मुझे जोहनी थी, कोठारी बंधुओं की कुर्बानी मुझे देखनी थी |
आज खड़ा हूँ मैं गौरवान्वित मुख से,
अपनों पर आत्माभिमान है |
मैं राम मंदिर हूँ, मेरी एक कहानी है |
—रेणु राजवंशी गुप्ता